जैसलमेर की हवाएं उस दिन कुछ ज़्यादा ही उदास थीं। जैसे रेत के कणों में भी एक दर्द समाया ...
कॉलेज का ऑडिटोरियम हल्की-सी चहलकदमी और हलके संगीत से गूंज रहा था। दीवारों पर चिपके पोस्टर और रंगीन लाइट्स ...
सूरज अपनी अंतिम किरणों को धरती पर बिखेरते हुए धीरे-धीरे क्षितिज की ओर ढल रहा था। जैसलमेर की सोनाली ...
कॉलेज में तीसरा दिन था।शिवम अब धीरे-धीरे इस नए माहौल से घुलमिल रहा था। हर सुबह वह सबसे पहले ...
सुबह की हल्की गुलाबी धूप खिड़की के शीशे से छनकर शिवम के कमरे में फैली हुई थी। दीवार पर ...
सुबह की हल्की धूप खिड़की से अंदर झाँक रही थी, लेकिन शिवम की आँखें मोबाइल स्क्रीन पर टिकी थीं। ...
संयोगिता के जाने के बाद आदित्य के मन में एक बेचैनी घर कर गई। वह जानता था कि उसकी ...
धीरे-धीरे जैसलमेर की वो पुरानी गलियाँ आदित्य के लिए सिर्फ शहर की गलियाँ नहीं रहीं। वे उसके दिल की ...
गरीबी सिर्फ जेब में नहीं होती, यह इंसान के दिल और दिमाग पर भी असर डालती है। शिवम ने ...
महोत्सव की भीड़ धीरे-धीरे छंटने लगी थी, लेकिन आदित्य की आँखों में अब भी वही छवि बसी थी—संयोगिता, मंच ...