Gujarati Whatsapp Status | Hindi Whatsapp Status
Ashu_ Mishra

मां ने मर्म को मर्म समझ तुमने मर्म को जख्म समझा कौन-कौन नहीं जख्म कुर्ता है समय के साथ अब क्या जाने पर भी जख्म को जख्म समझा है - Ashu_ Mishra

Ashu_ Mishra

तुम हमको गम देकर रुसवाई करते हो आने पर केवल बेवफाई करते हो जाने पर केवल शिकवाई करती हो ओके करने पर दवाई करोगी - Ashu_ Mishra

Ashu_ Mishra

रूठ गए तो मुस्कुराना सिखाती हो हंस दिए तो गम भुलाना सिखाती हो है तो जाना सिखाती हो ना रहे तो क्या जमाना सिखाती हो - Ashu_ Mishra

Ashu_ Mishra

मोहब्बत को मजाक समझती हो क्या दिल को हिसाब समझती हो क्या है तो कदर कर लो जाने को गणित का हिसाब समझती हो क्या - Ashu_ Mishra

Ashu_ Mishra

वह हमें रोशनी में ढूंढते हैं उन्हें अंधेरों का हिसाब कहां हम उन्हें उजाले में ढूंढते हैं हमें अंधेरों का हिसाब का

Ashu_ Mishra

रात गहरी नींद आने को सुबह करी नींद से जगाने को दोपहर भूख और प्याज की तलाश को शाम जगूंगती रोशनी और उजाले खास को कब बीत गई पता ना चला कब आ गई पता ना चला बच गई बस यह जिंदगी खास को रात करी नींद आने को सुबह कारी नींद से जगाने को सुबह की नटखट दोपहर की चाल रात की सुस्तियां फिर सुबह का कमाल अब क्या करें इसका हल जहां से शुरू वही खत्म है कहानी रात की गहरी नींद आने को सुबह कारी नींद से जगाने को झज्जर वह बोलती कब जाओगे हम भी कंप्लीट थोड़ी है जब जाओगे फिर से वही आदत वही पुरानी चाल है हम भी थोड़ी कम बदमाश है रात की गहरी नींद आने को सुबह करें नींद से जगाने को

Kaushik dave

અધૂરો પ્રેમ તું હતી, પણ મારી નહોતી એ સત્ય સ્વીકારતા શીખ્યો છું હું. હસતો રહ્યો દુનિયા સામે, પણ અંદરથી રોજ મર્યો છું હું. વચન આપ્યા હતા સાથે ચાલવાના, રસ્તામાં તું બદલાઈ ગઈ. હું ત્યાં જ ઊભો રહ્યો, જ્યાં તારી યાદો મને છોડીને ગઈ. રાતો આજે પણ પૂછે છે, “એ ક્યારેય યાદ કરે છે તને?” જવાબમાં મૌન જ રહે છે, કારણ કે દુઃખ બોલતું નથી, સહે છે મને. પ્રેમ ખોટો નહોતો મારો, કમી તો કદાચ નસીબમાં હતી. તું પૂરી થઈ ગઈ કોઈ બીજાની સાથે, અને મારી કહાની અધૂરી રહી ગઈ. ✍️ Writer : Kaushik Dave

Aachaarya Deepak Sikka

*ॐ नमः शिवाय* *अतिवर्ती नक्षत्र उस स्थिति को कहते हैं जब कोई ग्रह किसी नक्षत्र में अत्यधिक तीव्र गति से प्रवेश करके बहुत कम समय में उसे पार कर जाता है।* सरल शब्दों में सामान्यतः कोई ग्रह एक नक्षत्र में निश्चित अवधि तक रहता है। लेकिन जब वह अपनी औसत गति से अधिक तेज चलता है और नक्षत्र में टिके बिना शीघ्र निकल जाता है, तो उस नक्षत्र में उसकी स्थिति अतिवर्ती (Ativarti) कहलाती है। ज्योतिषीय विशेषताएँ अतिवर्ती ग्रह फल को जल्दी देता है, परन्तु फल अस्थिर, अचानक या अल्पकालिक होता है। ऐसा ग्रह व्यक्ति के जीवन में अचानक घटनाएँ शीघ्र लाभ या हानि अधूरापन या जल्दबाज़ी मानसिक अस्थिरता जैसे प्रभाव दे सकता है। किन ग्रहों में अतिवर्तन अधिक देखा जाता है *चन्द्रमा (सबसे अधिक)* बुध शुक्र कभी-कभी मंगल *उदाहरण* यदि चन्द्रमा किसी जन्मकुंडली में किसी नक्षत्र को अत्यंत शीघ्र पार कर रहा हो, तो उस नक्षत्र के स्वामी और कारकत्व के फल व्यक्ति के जीवन में तेज़ी से आते-जाते देखे जाते हैं। शास्त्रीय संकेत अतिवर्ती ग्रह को कभी-कभी *अल्पफलदायक* क्षणिक प्रभाव वाला भी कहा गया है, जब तक कि वह शुभ भाव, शुभ दृष्टि या योग से समर्थ न हो।

Aachaarya Deepak Sikka

*ॐ नमः शिवाय* *गुलिक उपग्रह* शनि का अंधकारमय संतान: गुलिक आपके घर और आपके कर्म में कैसे बैठता है कुछ जन्मकुंडलियों में एक बहुत अजीब तरह की छाया होती है। जीवन चलता रहता है, लेकिन परिवार की कहानी में अस्पताल की गंध, अंतिम संस्कार, रक्त जाँच, और स्वास्थ्य संबंधी डर बार-बार लौटते रहते हैं। आचार्य मन्त्रेश्वर इस छाया को गुलिक और मांडी कहते हैं — शनि की संतान — राहु और केतु जितनी ही कठोर, जो हमेशा सूर्य और चंद्रमा (जीवन देने वाले) को विचलित करती रहती हैं। जब गुलिक या मांडी किसी भी भाव को तीव्र रूप से स्पर्श करते हैं, तो जीवन का वह क्षेत्र दूषित या असुरक्षित सा महसूस होने लगता है। यदि वे चतुर्थ भाव को छुएँ, तो व्यक्ति बार-बार घर बदलता है, या घर बीमारी और तनाव से भारी हो जाता है। यदि वे लग्न या चंद्रमा के साथ हों, तो शरीर उम्र से पहले थका-थका लगता है, बीमारी से अधिक बीमारी का डर बना रहता है, नींद टूटती है, सपने अजीब होते हैं। यदि वे सप्तम या अष्टम भाव पर आक्रमण करें, तो आसपास के करीबी लोगों में ऑपरेशन, दुर्घटनाएँ, अचानक हानियाँ सुनने को मिलती रहती हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि “आपकी मृत्यु ऐसे होगी”, बल्कि आप जीवन में बार-बार अंत, अस्पताल और विदाई के दृश्यों के साक्षी बनते हैं। यह छोटे-छोटे व्यवहारों में भी दिखता है। जिन लोगों पर गुलिक/मांडी का प्रभाव अधिक होता है, वे अक्सर पुराने मेडिसिन, एक्सपायर्ड गोलियाँ, इस्तेमाल किए गए इंजेक्शन के पैकेट, पुराने मेडिकल रिपोर्ट्स और अस्पताल की फाइलें घर के कोनों में सालों तक संभालकर रखते हैं। कई बार मैंने देखा है कि एक खास दराज या डिब्बा होता है, जहाँ ये सारी “मृत्यु की स्मृतियाँ” जमा रहती हैं, और वही डिब्बा बिस्तर के पास या मंदिर के कमरे में ही रखा होता है। कुछ लोग इस्तेमाल की हुई पट्टियाँ, पुराने थर्मामीटर, टूटा हुआ ऑक्सीमीटर, खाली सिरप की बोतलें उसी अलमारी में रखते हैं, जहाँ भगवान की तस्वीर, अगरबत्ती और कुमकुम भी रखा होता है। प्रदूषण का ग्रह सचमुच देवता-स्थान के साथ बैठ जाता है। एस्ट्रो वास्तु इसे बहुत स्पष्ट दिखाता है। गुलिक-प्रकार की ऊर्जा गंदे कोनों को पसंद करती है—सीढ़ियों के नीचे के स्टोर रूम जहाँ जाले और धूल जमी हो, बिना वेंटिलेशन के शौचालय, पीछे की बालकनी जहाँ टूटे बाल्टे, पोछे, पुराने जूते और जंग लगे लोहे फेंके रहते हैं। यदि ऐसा कोई कोना सीधे आपके बेडरूम, रसोई या घर के मंदिर की दीवार से सटा हो, तो मन बिना कारण भारी, उदास और डरा-डरा सा रहने लगता है। मांडी के प्रभाव वाले कई घरों में नालियों, गटर, सेप्टिक टैंक या मुख्य द्वार के बाहर गंदे पानी की समस्या बनी रहती है। व्यक्ति कहता रहता है, “पता नहीं क्यों, घर के बाहर हमेशा गंदगी रहती है,” और साथ ही सोचता है कि अंदर शांति क्यों नहीं है। उपाय केवल मंत्र से शुरू नहीं होता। पहला उपाय है “शुद्धि” — सफ़ाई। यदि आपको लगता है कि आपके जीवन में अस्पताल-ऊर्जा बहुत अधिक है, तो सबसे पहले देखें कि आप मेडिकल फाइलें और दवाइयाँ कहाँ रखते हैं। उन्हें बेड के हेडबोर्ड और मंदिर से दूर करें। दक्षिण या पश्चिम दीवार की किसी व्यावहारिक जगह पर एक साफ़, बंद शेल्फ बनाएं, केवल वर्तमान दवाइयाँ रखें और एक्सपायर्ड दवाओं को सम्मानपूर्वक हटा दें। शौचालय और नाली वाले स्थानों की अच्छी तरह सफ़ाई करें। यदि घर के बाहर कोई कोना स्थायी रूप से गंदा रहता है जहाँ कचरा जमा होता है, तो सप्ताह में कम से कम एक बार वहाँ फिनाइल मिला पानी डालें और प्रार्थना करें— “जो भी नीचा, गंदा, दुखद है, वह यहीं रुक जाए, घर के भीतर न आए।” आध्यात्मिक रूप से, इस छाया से सूर्य और चंद्रमा की रक्षा आवश्यक है। प्रतिदिन सूर्योदय के समय स्वच्छ जल से सरल सूर्य अर्घ्य दें और सच्चे मन से प्रार्थना करें— “हे सूर्यदेव, मेरी प्राणशक्ति को बलवान और मेरे मन को स्पष्ट रखिए।” यह धीरे-धीरे भय को काटता है। सोमवार को, यदि बड़ा व्रत न भी कर सकें, तो रात में भारी भोजन से बचें, अधिक सादा पानी पिएँ, और किसी शांत ज्योतिर्लिंग या चंद्रमा की तस्वीर के सामने पाँच मिनट शांत बैठकर केवल श्वास-प्रश्वास पर ध्यान दें। गुलिक/मांडी योग वालों के लिए नियमित महामृत्युंजय जप (केवल 11 बार प्रतिदिन भी) सच्ची श्रद्धा से किया जाए तो सौ अलग-अलग उपायों के पीछे भागने से कहीं अधिक गहराई से काम करता है। शिव उपासना इस मृत्यु-छाया को थामने का एक अत्यंत सुंदर मार्ग है। उपासना का प्रकार इस बात पर चुना जा सकता है कि आपका जीवन कैसा महसूस हो रहा है। यदि आप हमेशा दूसरों के दुख से घिरे रहते हैं—अस्पतालों में काम, बीमार रिश्तेदारों की देखभाल—तो चिकना काला पत्थर या नर्मदा शिवलिंग उपयोग करें। उसे स्वच्छ आसन पर रखें, सीधे फर्श पर नहीं। शनिवार को उसमें थोड़ा काला तिल मिला जल अर्पित करें और “मृत्यु से बचाव” नहीं, बल्कि उसके सामने साहस और स्थिरता की प्रार्थना करें। यदि भय अधिक मानसिक है—पैनिक अटैक, मृत्यु का अत्यधिक चिंतन, अस्पताल जाने का डर—तो स्फटिक (क्रिस्टल) शिवलिंग रखें। उसे शांत, उजले कोने में, संभव हो तो उत्तर-पूर्व में रखें। सादा जल या थोड़ा गुलाब जल से अभिषेक करें और कुछ मिनट शांति से बैठकर स्फटिक पर पड़ती रोशनी को देखें। इससे चंद्रमा में पुनः सत्त्व आता है। यदि गुलिक आपके कार्य-स्थल और निर्णयों को बाधित कर रहा है, तो कार्य-मेज़ के पास एक छोटी, स्वच्छ शिव की तस्वीर या लिंग रखें, उस क्षेत्र को बहुत साफ रखें—न धूल, न पुराने तार—और कार्यदिवस की शुरुआत एक जागरूक “ॐ नमः शिवाय” से करें। एक महत्वपूर्ण बात याद रखें: गुलिक और मांडी यह दिखाते हैं कि जीवन आपको कहाँ यह स्वीकार करने को मजबूर करता है कि एक दिन सब कुछ समाप्त होगा। यदि आप इस सत्य से लड़ते हैं, तो भय बढ़ता है। यदि आप इसे स्वीकार कर लेते हैं और जीवन के उस क्षेत्र—शरीर, कमरा, मंदिर, नाली, स्मृति—को साफ कर लेते हैं, तो यही योग आपको संकट में मजबूत, अस्पताल की परिस्थितियों में विवेकशील, और कठिन समय से गुजर रहे दूसरों के प्रति करुणामय बनाते हैं। अनेक अच्छे डॉक्टर, हीलर और कठिन स्थानों पर सेवा करने वाले लोग इन्हीं योगों को लेकर चलते हैं

Kaushik dave

🌑 Bhay: The Gaurav Tiwari Mystery — Review Writer / Reviewer: Kaushik Dave Category: Web Series Review / Thriller / Horror कहानी (Story) Bhay: The Gaurav Tiwari Mystery एक रहस्यमयी और थ्रिलर वेब सीरीज है, जो भारत के पहले प्रसिद्ध पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेटर गौरव तिवारी की असली जिंदगी और उनके द्वारा जांच की गई अद्भुत घटनाओं पर आधारित है। इस सीरीज में हमें दिखाया गया है कि कैसे गौरव तिवारी ने अनजानी शक्तियों, भूत-प्रेत और असामान्य घटनाओं की जांच की। कहानी सिर्फ डराने के लिए नहीं है, बल्कि यह दर्शकों को मानसिक और भावनात्मक स्तर पर जोड़ती है। हर एपिसोड में रहस्य धीरे-धीरे खुलता है और दर्शकों को यह एहसास दिलाता है कि डर केवल भूत-प्रेत में नहीं, बल्कि इंसान के मन में भी हो सकता है। यह वेब सीरीज आपको सिर्फ डराने वाली कहानी नहीं देती, बल्कि सोचने पर मजबूर कर देती है कि असली जीवन में भी ऐसे रहस्य मौजूद हो सकते हैं। अभिनय (Performance) इस वेब सीरीज का सबसे मजबूत पहलू है अभिनय। करण टैकर (Gaurav Tiwari) — उन्होंने अपने किरदार में पूरी तरह घुल-मिलकर दर्शकों को भरोसा दिलाया कि वे सच में एक पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेटर हैं। उनका शांत और गंभीर अंदाज कहानी की गंभीरता को और बढ़ाता है। कैल्की कोएचलिन — वह डर और संवेदनशीलता का सही मिश्रण पेश करती हैं। उनकी भाव-भंगिमा और प्रतिक्रियाएं कहानी में रोमांच और मानवता का संतुलन बनाती हैं। अन्य कलाकार — सोलोनी बाटरा, डेनिश सूद और निमिषा नायर जैसी कलाकारों ने अपनी भूमिकाओं में असरदार प्रदर्शन किया है। अभिनय की वजह से कहानी सिर्फ हॉरर नहीं, बल्कि मनोरंजन और रहस्य का बेहतरीन मिश्रण बन जाती है। निर्देशन और तकनीकी पहलू (Direction & Technical Aspects) निर्देशन और सिनेमैटोग्राफी ने कहानी के डर और रहस्य को और गहरा बना दिया है। साउंड डिज़ाइन और म्यूजिक माहौल को और डरावना बनाते हैं। इस सीरीज में तेज jump scares कम हैं, लेकिन धीमे और सोच-समझकर डराने वाले दृश्य दर्शकों को गहराई से जोड़ते हैं। निर्देशक ने कहानी को ऐसा पेश किया है कि हर दृश्य का महत्व है। कहीं भी दर्शक का ध्यान भटकता नहीं, और हर एपिसोड खत्म होने पर अगला एपिसोड देखने की उत्सुकता बनी रहती है। दर्शकों की राय और लोकप्रियता (Audience Response & Popularity) IMDb जैसी वेबसाइटों पर सीरीज की रेटिंग लगभग 8.3/10 है। मीडिया और दर्शकों दोनों ने इसे धीमे लेकिन गहरे डर वाली थ्रिलर के रूप में सराहा है। जो दर्शक तेज हॉरर पसंद करते हैं, उनके लिए pacing थोड़ी धीमी लग सकती है। सीरीज की सबसे बड़ी खासियत है कि यह डर और रहस्य को वास्तविक जीवन की झलक के साथ पेश करती है, जिससे दर्शक जुड़ाव महसूस करते हैं। विशेषताएँ (Highlights) वास्तविक जीवन पर आधारित — गौरव तिवारी की असली जिंदगी और उनकी जांच से प्रेरित। मनोरोग और मानसिक तनाव पर जोर — डर केवल भूत-प्रेत में नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी। धीमी pacing, गहन रहस्य — jump scares कम हैं, लेकिन रहस्य धीरे-धीरे खुलता है। बेहतरीन अभिनय — करण टैकर और कैल्की कोएचलिन की शानदार प्रस्तुति। तकनीकी गुणवत्ता — म्यूजिक, साउंड और सिनेमैटोग्राफी का उत्कृष्ट मिश्रण। अंतिम विचार (Final Verdict) Bhay: The Gaurav Tiwari Mystery एक बेहतरीन पैरानॉर्मल थ्रिलर है जो दर्शकों को हल्का डर, रहस्य और वास्तविक जीवन की जाँच में डुबो देती है। यदि आप डर और रहस्य दोनों का अनुभव करना चाहते हैं, यह वेब सीरीज जरूर देखें। जो लोग तेज़ हॉरर पसंद करते हैं, उनके लिए pacing थोड़ी धीमी लग सकती है, लेकिन कहानी की गहराई और रहस्य इसे अलग बनाते हैं। Rating: ⭐ 8.3 / 10 Writer / Reviewer: Kaushik

shabdh skhi

अकेलेपन का ये सफ़र एक सजा जैसा है, हर पल में बस दिल का दर्द बसा है। - shabdh skhi

Kaushik dave

મનના રંગ મનના રંગ માં ગૂંથાય મારા સપના, પ્રેમના તારું બંધાય, નયનના અર્પણા। દુનિયા ને જોઈને ક્યારેય નહીં હારું, હૃદયની આ વાત, ક્યારેય નહીં છુપાઉં। સંઘર્ષના રસ્તા, હવે મારો સાથી, હાસ્ય-બિન્નુ સ્મિત, બને જીવનની ભાતી। પ્રતિ દિવસ નવું, નવો એક મઝો લઈએ, હકીકત અને કલ્પના ને મળી ભેગું ભળીએ। જીવન એ માત્ર સમય નથી, એ મારો સાથ છે, મારો અવાજ છે, મારો સ્વપ્ન છે। શબ્દો માં લખું હું મારા દિલની વાત, જ્યાં દરેક શબ્દ, બને કોઈની પ્રેરણાનું ગીતાત।

Nilesh Rajput

पहन के ताज जो सर पे बहुत इतराती है, देखो कहीं वो शहर बेवफ़ाओं का तो नहीं।

Dr Sonika Sharma

लड़के वाले बहुत सरल थे, इतने सरल कि उन्होंने साफ़-साफ़ कह दिया— “हम दहेज नहीं लेते… बस शादी बिना सुविधा के नहीं करते।” लड़की के पिता ने राहत की साँस ली। मन ही मन बोले चलो अच्छा हुआ लालची लोगों से पाला नहीं पड़ा और भगवान का नाम लिया। लड़का पढ़ा-लिखा है। लड़के की माँ ने सूची आगे बढ़ाई “ये कोई दहेज नहीं है, बस कुछ जरूरी व्यवस्थाएँ हैं— कार, फर्नीचर, एसी आदि और हाँ… लड़के की पढ़ाई पर जो खर्च हुआ था, वो तो आपको समझना ही पड़ेगा।” पिता ने सिर हिलाया। समझने की उम्र बहुत पहले निकल चुकी थी। लड़की चाय लेकर आई। उसने कप रखते हुए पूछा “आंटी, क्या इसमें GST लगेगा या ये सब परंपरा के अंतर्गत आता है?” कमरे में गला साफ़ करने की आवाज़ फैल गई। लड़के के पिता मुस्कुराए “बेटी, तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है, असल ज़िंदगी में ऐसे सवाल नहीं पूछते।” लड़की बोली— “असल ज़िंदगी में ही तो लड़कियाँ बिकती हैं अंकल।” अब तक कमरे में सन्नाटा पसर चुका था । लड़के ने स्थिति सँभालने की कोशिश की “देखिए, हमें किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है, पर समाज है… लोग सवाल करेंगे।” लड़की ने जवाब दिया— “तो शादी हम कर रहे हैं या समाज?” लड़के की माँ फुसफुसाईं  “लड़की ज़्यादा बोलती है।” लड़की मुस्कुरा दी— “हाँ आंटी, इसीलिए मेरी कीमत भी ज़्यादा लग रही है।” लड़की बोली - चाय ठंडी हो गई और रिश्ता भी। लड़के वाले उठे और जाते-जाते लड़की की माँ बोलीं— “ऐसी सोच के साथ लड़की की शादी मुश्किल होती है।” लड़की ने दरवाज़ा खोलते हुए कहा— "और ऐसी शादियों के साथ लड़की की ज़िंदगी बर्बाद हो जाती हैं।” दरवाज़ा बंद हुआ। लड़की ने चैन की साँस ली.....। - Dr Sonika Sharma

kattupaya s

Goodnight friends...sweet dreams

S A Y R I K I N G

मैं पूजता हूँ अपने इश्क़ को, दीये की तरह जलना तो लाजिमी हैं मेरा... मेरा इश्क़ ही, मेरी इबादत है..... (जिसमें मैं खुद जल कर उसे रोशनी देता हूं और अपने तले अंधेरा रखता हूं

vikram kori

‎🌹 Romantic bites Part 1 ‎“वो मेरी ज़िंदगी का हिस्सा नहीं, ‎मेरी ज़िंदगी की वजह है…” 💞

S A Y R I K I N G

अपनी ही ज़िन्दगी से अपने लिए ही कुछ वक़्त नहीं निकाल पा रहे हो इतनी तेज़ी से कहाँ चले जा रहे हो ?

Rushil Dodiya

khilte hai gul yahan khilke bikharne ko milte hai dil yahan milke bichhadne ko - gopaldas niraj

Jyoti Gupta

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Rushil Dodiya

बातें भूल जाती हैं, यादें याद आती हैं ये यादें किसी दिल-ओ-जानम के चले जाने के बाद आती हैं - आनंद बक्षी

Rushil Dodiya

नदियों के ये गहने है जो पर्वतों ने पहने है ये जो पेड़ो की छांव घनी है ये हमारे लिए तो बनी है ये रस्ते और ये राहें पुकारे खोल के बाहें रोज़ हो सफर पर ऐसा कहां ?

અશ્વિન રાઠોડ - સ્વયમભુ

શિર્ષક: રોજ શબ્દો રમે છે રોજ રેતીના પટાગણમાં, ઉમંગ ઊઠે છે રોજ ઘરના આંગણમાં. છાસ વારે છમકલા થાય છે રોજ રણ મેદાનમાં, દાવ પર દાવ ગોઠવાય છે રોજ યુદ્ધના મેદાનમાં. હોસ અને જોશ ખોવાય છે રોજ પ્રેમના બંધનમાં, લાગણીઓ તણાય છે રોજ આંસુના સબંધમાં. કિનારાની કડ ધોવાય છે રોજ ભરતીની ઓટમાં, સીપ અને સંખલાવો ઘડાય છે રોજ ભીની રેતમાં. સફેદ રણની ચાદર ઢળાઈ છે રોજ આ ચાંદની રાતમાં, એક મીઠો સાદ સંભળાય છે રોજ આ મેદાનમાં. મારી જિંદગીનું સિંચન થાય છે રોજ ફૂલોના બાગમાં, છતાં જીવન કરમાય છે, રોજ "સ્વયમ'ભુ"આ મેદાનમાં. અશ્વિન રાઠોડ "સ્વયમ’ભુ"

Rushil Dodiya

ये आँखें बताती है सच सच कहानी के मासूम होती है मासूमियाँ भी - ऋषिल

Rushil Dodiya

क्या कहूं कैसे लगते है दिल पे जुल्फों के साए कोई भुला राही जैसे मंज़िल पा जाए या कोई दिल तूफान का मारा दर्द की लहरों पे आवारा प्यार का साहिल पा जाए - मजरूह

Nilesh Rajput

"कायर हो तुम सब, जो वफ़ादारों से महोब्बत करते हो, हम तो शायर हैं जनाब, हम तो बेवफ़ाओं से महोब्बत करते हैं।"

Nikhil

એક ગુલાબ બાવળ વચ્ચે જંગલમાં ઊગ્યું....just Find out who are you! - Nikhil

Fact Of Love

मेरा मेहबूब 💔 कितने दीवाने रख रखे है गोद में एक आने लग जाता है तो एक जाने लग जाता है और क्या मोहब्बत है दुनिया को आपके पैरों से जो भी आता है दबाने लग जाता है

Imaran

💔imran 💔

Aruna N Oza

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Aruna N Oza

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Aruna N Oza

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Gautam Patel

જય જલારામ

yeash shah

पितृ दोष : मेरे दृष्टिकोण से। पारम्परिक ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष के नाम पर विधि विधान का प्रावधान है, सनातन विचारधारा बरसों से पूर्व जन्म और आने वाले जन्मों में विश्वास रखती है, मृत्यु के बाद व्यक्ति आत्मा के रूप में पितृ लोक ,नाग लोक , वैकुंठ में निवास करता है, ऐसी विचारधारा है, पहले पितृ दोष के कारण जान ले। यह कहा जाता है, कि आपकी कुंडली में अगर ९, १२वे घर में शनि और सूर्य का योग हो, या राहु और सूर्य का योग हो, अथवा ९,१२ वे घर में बैठे सूर्य को शनि या राहु देखते हो ,तो आपकी कुंडली में पितृ दोष हो सकता है। अब इस के लक्षण जान ले। यदि आपके घर में बरसो से आर्थिक संकट हो, बिना किसी भी कारण बीमारियां लगी रहती हो, बार बार घर की मरम्मत करवानी पड़ती हो, घर में लगाए पौधे जल्दी सुख जाते हो, घर में निरंतर अशांति और क्लेश रहता हो, आपके घर के कमाने वाले सदस्य के ऊपर ऋण हो, घर की स्त्री या बच्चे असाध्य बीमारी से ग्रस्त हो, और अक्सर घर के बाहर कुत्ते रोते हो, बिल्ली और बिल्ला झगड़ते रहते हो, तुलसी आप के घर में लगने पर बार बार जल जाती हो, गाय या कुत्ते आपके घर की रोटी खाना बंद कर दे, तो यह सब पितृ दोष के लक्षण है। ऐसा क्यों होता है? जब यह सवाल पूछा जाए तो ज्योतिष शास्त्र के जानकार बताते है कि आपके मरे हुए स्वजन आप से नाराज है, उनकी इच्छा अधूरी है, इसी लिए वह लोग आपको तंग कर रहे है। आइए इस के उपाय भी जाने, १.पीपल के वृक्ष को जल चढ़ाए।२.नारायण बलि की पूजा करवाए ३. विष्णु सहस्त्रनाम और नारायण कवच का पाठ करे। ४. साल में एक बार सत्यनारायण की कथा करे , ब्राह्मणों को भोजन दे। ५. कौओं की सेवा करे। ६. नारायण विधान का पूजन करवाए। ७. पितृ स्त्रोत्र का पाठ करे। ७. जगन्नाथ पुरी, द्वारिका, तिरुपति बालाजी या बद्रीनाथ में से किसी भी एक मंदिर में पितरों के नाम का पूजन करवाए। ८. वृद्धाश्रम में दान पुण्य करे। ९. घर के मटके के पास घी का दिया जलाए और प्रार्थना करे। अब इस को तार्किक दृष्टि से भी समझे, सूर्य १ राशि में १ महीना रहता है, इस तरह १ साल में वह १२ राशि का चक्र पूर्ण करता है। हमारे पास १२ लग्न है, तो हर साल में १ महीना ऐसा होगा जब किसी की कुंडली में सूर्य १२ वे घर में होगा, ही होगा। अब रोज भारत में ६०००० से ६९००० के बीच में बच्चे जन्म लेते है, यानी कि १ महीने में मान ले कि १८००००० बच्चे पैदा हुए, अब शनि की ३,७,१० और राहु की ५,९ दृष्टि है, तो ५/१२ घर पर शनि या राहु का प्रभाव होगा। जो ४२% संभावना है, तो हर साल १ महीने में ७,५६००० बच्चे पितृ दोष ले कर पैदा होंगे। और क्या सभी के पितृ उन से नाराज रहेंगे? क्या सभी दरिद्र होंगे? यह बात समझ से बहार है।

Juhi Upadhyay

क़ाफ़िया मिलाएँ ************** मोहब्बत करोगे तो रोना पड़ेगा ओ जानम ये दिल अपना खोना पड़ेगा कभी आंसू ख़ुशी-ग़म के पीने पड़ेंगे कभी चुपके दामन भिगोने पड़ेंगे कभी ख़्वाब जुड़ के भी टूटा करेंगे तो सोचो ख़ुद को संभालोगे कैसे मोहब्बत करोगे तो रोना पड़ेगा ओ जानम ये दिल अपना खोना पड़ेगा 【juhi]】 upadhyay

Saroj Prajapati

गर्दिश के दिनों की भी अपनी ही है खास बात ना जाने कितने ही चेहरों से उतर जाते झूठे नकाब और जमाने की ठोकरो से बुलंद हो जाता खोया विश्वास।। सरोज प्रजापति ✍️ - Saroj Prajapati

Nilesh Rajput

मेरा इश्क़, तुम्हारे इश्क़ जैसा हो, ये ज़रूरी तो नहीं, तुम भी मुझसे ही मोहब्बत करो ,इश्क़ में ये ज़रूरी तो नहीं। तेरी बेवफ़ाई पर तुझे भुला भी दूँ अगर, फिर से तुझ से ही इश्क़ हो जाए, ये ज़रूरी तो नहीं।

Dada Bhagwan

हमें जीवन में कुछ न कुछ पाने की चाह होती है। और वही वस्तुएँ प्राप्त हो जाने पर कुछ नया प्राप्त करने की इच्छा होती है। ऐसे में जीवन में संतोष कैसे प्राप्त करें? क्योंकि जीवन में आगे बढ़ने की चाह से हम खुद से बेहतर व्यक्तियों से अपनी तुलना करके आगे बढ़ते हैं। ऐसे में असंतोष की भूख और बढ़ जाती है और जीवन फिर से दुःखमय लगने लगता है। ऐसा क्यों होता है? आइए जानें इस विडीयो में... Watch here: https://youtu.be/nb3Jzk_brww #lifelessons #lifelearning #trending #hindivideo #DadaBhagwanFoundation

Raj Phulware

IshqKeAlfaaz आयुष्याच्या काठावर

Narendra Parmar

कभी कभी दिल की धड़कनें मेरी रुक जाती है जब कोई बात पर तुम मुझसे ख़फ़ा हो जाती है ।। नरेन्द्र परमार " तन्हा "

Soni shakya

"आओ मेरे करीब उतना ही जितना कि, कोई ख्वाब अपनी ख्वाहिशों के करीब होता है" - Soni shakya

Gajendra Kudmate

उनसे नजरें जब मीली थी रुख से आँचल ढलका था आँखों से हुई थी शरारत दिल में कुछ छलका था गजेंद्र

વૈભવકુમાર ઉમેશચંદ્ર ઓઝા

कत्लही करना है तो खंजर ही चला देते जालिम। यूं तिरछी नज़रसे घायल क्यों कर गए? - स्पंदन

Yuvraj verma

Mai ghav esa kar jaunga Tumhe bina bataye mar jaunga Tum sochti ho tumhare bina mera kya hoga Me tumhe amar kar jaunga Meri umar bhi tere naam kar jaunga Tu ek bar ha to keh, hukum kar Fir dekhna haste haste me  ye jindgi nilam kar jaunga

Shailesh Joshi

કોઈપણ નાના મોટા દુ:ખનું ખાલી રટણ કરવાથી, વાગોળવાથી, કે પછી નાસીપાસ થવાથી જે કોઈ વ્યક્તિ પોતાને બચાવી શકે, તો કોઈનું પણ નસીબ એટલું ખરાબ નથી હોતું, જેટલું આપણને જોવા સાંભળવા મળે છે. - Shailesh Joshi

Miss writer

kisi ne puchha ki... jiska milna namumkin lag raha hai agar mahadev ne use hi tumhare naseeb me likh diya toh kaisa lagega??? mene bhi jawab me kaha- lagega jaise zameen par hai jannat, jaise puri ho gayi hai janmo ki mannat, jise dur jate dekh aate the ansu, ab se har subah me usi ke pass hu, dil jiske liye dhadakta tha, aaj wo sine se laga hai! jiski ek jhalak ke liye roti thi, ab uske pair chumti hu.

manshi

part2

manshi

part1

Awantika Palewale

ये इश्क़ के रास्ते मुझे नहीं खिंचते, मैं अपने रास्ते ख़ुद बनाती हूँ। ख़्वाबों को किसी क़ैद में रखना मुझे नहीं आता, मैं टूटे हौसलों को भी उड़ान सिखाती हूँ। मुझे मंज़िलों का शोर कभी लुभाता नहीं, मैं ख़ामोशी में भी अपनी आवाज़ पाती हूँ। जो लिख दे मेरी तक़दीर किसी और के नाम, ऐसी हर एक क़लम को मैं मिटाती हूँ। तजुर्बों की आग में जलकर भी शिकायत नहीं, मैं राख से फिर ख़ुद को सजाती हूँ। मुझे भीड़ का हिस्सा बनना मंज़ूर नहीं, मैं अलग चलकर ही अपनी पहचान बनाती हूँ।

Mansi

अगर 2026 में सच में दुनिया खत्म होने वाली है तो वो कहावत सच होगी जीने के है बस चार दिन 😂😂😂

AKHILABALARAJ

maybe the story going to be touch everyone's heart

AKHILABALARAJ

beautiful and unforgettable story.msybe it going to deep touch to everyone's heart

ભૂપેન પટેલ અજ્ઞાત

अपेक्षाएं निष्फलता को जन्म देती है और इच्छाएं विकृति को, जब इच्छा और अपेक्षा छोड़ा जाए तो इंसान परम आनंद को प्राप्त कर सकता है।। - ભૂપેન પટેલ અજ્ઞાત

Rohan Beniwal

15 अगस्त 1947, हवा में एक अजीब सी महक थी—आज़ादी की महक। भारत आज़ाद हो चुका था। जगह-जगह तिरंगा शान से फहरा रहा था। हर तरफ उमंग और उत्साह का माहौल था। पर कुछ तो अजीब था, जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया। पर क्या? अंग्रेज या तो लौट चुके थे या लौटने की तैयारी में थे, पर उनसे कुछ तो छूट गया था। कुछ ऐसा जिसे उनके साथ ही लौट जाना चाहिए था, पर वह भारत में ही रह गया। उस वक्त वह क्या था, किसी को पता नहीं था। यह भी नहीं पता था कि अंग्रेज इसे भूल गए हैं या जानबूझकर छोड़ गए हैं। पर आज़ादी के इतने साल बाद अब पता चल ही गया कि क्या छूटा था— अंग्रेज तो चले गए, पर 'Divide and Rule' की नीति को यहीं छोड़ गए। वही 'Divide and Rule', जिसके दम पर अंग्रेजों ने भारत पर लगभग 200 साल तक राज किया। अब यह नीति हमारे नेताओं के हाथ लग गई है। और मानना पड़ेगा, जिस तरह से हमारे नेताओं ने इसका इस्तेमाल किया है, उस तरह से तो अंग्रेज भी नहीं कर पाए थे। अगर कोई मुझसे पूछे कि आज़ादी से पहले और अब में क्या अंतर है? तो मेरा जवाब होगा— बस इतना ही कि पहले हम नंगे ही अंग्रेजों की गुलामी करते थे और अब लोकतंत्र के लिबादे में नेताओं की गुलामी करते हैं। आज़ादी से पहले हमें पता था कि हम गुलाम हैं, और अब नहीं है। क्या हम सच में आज़ाद हो गए हैं?

SADIKOT MUFADDAL 《Mötäbhäï 》

કોઈને એવો વહેમ હોય કે પૈસા ભેગા કરીને ક્યાં જશો તો એ લોકોને માત્ર એટલું જ કહીશ કે ખિસ્સા ખાલી કરીને એક વાર હોસ્પિટલ, સ્કૂલ કે માર્કેટમાં આટો મારી લેવો એટલે સમજાય જશે કે પૈસા ભેગા કરીને ક્યાં જશુ.... (આજના સમયની કડવી સચ્ચાઈ) ✅✅ - SADIKOT MUFADDAL 《Mötäbhäï 》

Imaran

💔imran 💔

Ghanshyam Patel

गलत जगह बंध जाने से अच्छा है उम्र भर भटकते रहना ।

Rahul Budiya

नज़र में आपकी नजारे रहेंगे, पलको पर चांद सितारे रहेंगे। बदल जाए तो बदले ये जमाना, हम तो हमेशा आपके दीवाने रहेंगे।। - Rahul Budiya

ज़ख्मी__दिल…सुलगते अल्फ़ाज़

™••..✍️ उम्र भर की नेकी, बस एक लम्हे में                खाक हो गई, जैसे ही एक गलती हुई, शख्सियत               नापाक हो गई, हज़ार बार सँवारा था जिसे अपनी                 वफ़ाओं से, वो  सारी  अच्छाइयाँ,  आज  चंद    शिकायतों की खुराक हो गई, नेकी करते रहिये, “क्योंकि इंसान भूल जाता है, पर ईश्वर नहीं,,☝️ 🙇‍♂️ जय श्री कृष्णा 🙇‍♂️     🙏 सुप्रभात 🙏 ᚔᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚔᚓᚓ  #motivatforself ᚔᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚓᚔᚓ        ==༆ ☆🇶ⁱʰˢɐ∀ ᭄==       🔘 Must Share 🔘

Hemant pandya

સમય તું શું મારૂં પારખું કરે? મે તો કદી તારી પરીક્ષા નથી કરી, તું બદલાયો પણ હું એનો એજ અડીખમ ઉભો આવ્યા અઢળક વંટોળ વાદળ વાવાઝોડા બાઢ પણ હું અડીખમ ઉભો તે બધું છીનવી ને પણ જોયું.. છતા જો હું ફરી બેઠો થઈ અડીખમ ઉભો.. સમય તું શું મારૂં પારખું કરે? મે તો કદી તારી પરીક્ષા નથી કરી, - Hemant pandya

Deepak Bundela Arymoulik

भगवत गीता जीवन अमृत https://arymoulikdb1976.blogspot.com/2025/12/8.html

kajal jha

“तुम्हारी एक मुस्कान पर हम सब हार बैठे, तुम्हारी हर बात में अपना संसार देख बैठे। कहने को तो मोहब्बत एक लफ़्ज़ भर है, पर तुम्हें चाहना हमारी आदत बन बैठे।” - kajal jha

Dr Darshita Babubhai Shah

मैं और मेरे अह्सास सहर सुहानी सहर जल्द ही होगी मुझको इशारा मिल गया हैं l जिंदगी को आसानी से जीने का सहारा मिल गया हैं ll ईश का शुक्रिया करते है दिल की तसल्ली के लिए भी l उसके इशारे से मुकम्मल आसमान सारा मिल गया हैं ll "सखी" डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

Raa

Miss you all kamine.

S Sinha

Someone has said so wisely , To understand what LIFE is , we must visit 3 places -<br /> 1.Hospital - Here we will understand nothing is more beautiful than good HEALTH<br /> 2. Prison - Here we will understand that FREEDOM is the most precious thing .<br /> 3 . Cemetery - Here we will realize that LIFE is worth nothing . The ground we walk on today will be our roof tomorrow . Nothing in life is PERMANENT .<br /> So be always HUMBLE , focus on Today ( present )

Razz Ratan

माँ के आँचल में जन्नत की छाया मिलती है, उसकी ममता में हर पीड़ा सिमट जाती है। भूखी रहकर भी जो हमें खिलाती है, वही माँ हर हाल में मुस्कुराती है। उसकी दुआओं से राहें आसान बनती हैं, अंधेरे में भी उम्मीद की किरण जगती है। माँ का प्रेम किसी शर्त का मोहताज नहीं, वह तो ईश्वर से भी पहले याद आती है। हर साँस में उसका त्याग बसता है, माँ ही सच्ची भक्ति, माँ ही मेरी शक्ति है।

Razz Ratan

माँ की ममता से बढ़कर कोई वरदान नहीं। उसके बिना ये जीवन एक पहचान नहीं। दर्द छुपाकर जो हर पल हँसना सिखाती है, वही माँ हमें जीने का हुनर सिखाती है। उसकी दुआओं से किस्मत सँवर जाती है, हर ठोकर में भी राह नज़र आती है। माँ का त्याग शब्दों में बयाँ नहीं होता, उसका प्रेम कभी भी कम नहीं होता। ईश्वर भी माँ के रूप में आता है, इसलिए माँ से बड़ा कोई भगवान नहीं होता।

Soni shakya

🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏 🌹 आपका दिन मंगलमय हो 🌹

GANESH TEWARI 'NESH' (NASH)

रथ शरीर, बुधि सारथी, इन्द्रियाश्व मन डोर। आत्मरथी बैठा हुआ, लेकर डोर कठोर।। दोहा--371 (नैश के दोहे से उद्धृत) ----गणेश तिवारी &#39;नैश&#39;

CHIRANJIT TEWARY

ओ शंकरा .. Download full song my youtube channel, Sanatani brahman7739

Harshida Joshi

જબ કોઈ ફૂલ ખીલેગા તો મૈં સમજ જાઉંગી કી તુમ મેરે સામને હો. જબ ભી હવાએ ચલેગી તો મૈં સમજ જાઉંગી કી તુમ મુજસે કુછ કહે રહે હો. જબ ભી બારીશ હોગી તો મૈં સમજ જાઉંગી કી તેમ મુજસે મિલને આયે હો. જબ બર્ફ ગીરેગી તો મૈં સમજ જાઉંગી તો મૈં સમજ જાઉંગી કી તુમ ખુશ હો. જબ હવાએ મહેકેગી તો મૈં સમજ જાઉંગી કી તુમ મેરે સાથ હો. - Harshida Joshi

બદનામ રાજા

જય શ્રી કૃષ્ણ 🙏

Aachaarya Deepak Sikka

*OM NAMAH SHIVAY* *Why is Khar Masa in Sagittarius (Dhanu) only?* 1. Meaning of Khar Māsa Khar &#61; donkey (symbol of weakness/slow movement) Indicates reduced solar strength Period avoided for auspicious beginnings 2. When does Khar Māsa occur? When the Sun transits Sagittarius (Dhanu) Also occurs in Pisces (Mīna) These are the only two signs considered Khar Māsa 3. Why specifically Sagittarius? (a) Astronomical reason Sun moves toward southern declination Sun’s heat and visibility reduce (Northern Hemisphere) Symbolic weakening of solar energy (b) Seasonal reason (Indian context) Marks winter / cold season Agricultural and social activities slow down Nature enters a resting phase (c) Mythological reason Sun’s chariot normally has seven horses During Sagittarius, horses are symbolically replaced by donkeys (khar) Indicates loss of speed, power, and momentum (d) Planetary reason Sagittarius is ruled by Jupiter (Guru) Sun (ego, authority) entering Guru’s sign signifies humility and restraint Material beginnings are discouraged 4. Spiritual significance Encourages nivṛtti (inner discipline) Suitable for: Japa Vrata Dana Svādhyāya Avoided for: Marriage Griha-praveśa New ventures 5. Why not other signs? Only Sagittarius and Pisces show: Weak solar transit Seasonal dormancy Transitional cosmic energy Conclusion Khar Masa occurs in Sagittarius because it represents a phase of weakened solar force, seasonal withdrawal, and spiritual introspection rather than worldly expansion.

Aachaarya Deepak Sikka

ग्रहों की महादशा तथा अन्तर दशा में प्रदान किए जाने वाले शुभ अथवा अशुभ प्रभाव के कारण __ सूर्य आत्मबल, अहं और सत्ता का ग्रह है। जो व्यक्ति सत्य, धर्म और उत्तरदायित्व से जुड़ा रहता है उसके लिए सूर्य सम्मान, प्रतिष्ठा और नेतृत्व देता है, किंतु अहंकारी, अत्याचारी या कर्तव्यच्युत व्यक्ति के लिए वही सूर्य अपमान, पदहानी और अधिकार से पतन का कारण बनता है। चंद्र मन, भावना और संवेदना का ग्रह है। संतुलित मन, शुद्ध भाव और करुणा रखने वाले के लिए चंद्र मानसिक शांति, लोकप्रियता और भावनात्मक सुरक्षा देता है, परंतु अस्थिर, भयग्रस्त या छलपूर्ण मन वाले व्यक्ति के लिए चंद्र भ्रम, अवसाद और मानसिक अशांति देता है। मंगल साहस, ऊर्जा और कर्म का ग्रह है। अनुशासित, परिश्रमी और संयमित जीवन वाले व्यक्ति को मंगल शक्ति, रक्षा और विजय देता है, जबकि क्रोधी, हिंसक या अव्यवस्थित जीवन शैली वाले व्यक्ति को दुर्घटना, विवाद और शारीरिक कष्ट देता है। बुध बुद्धि, वाणी और विवेक का ग्रह है। सत्यनिष्ठ, अध्ययनशील और स्पष्ट सोच वाले व्यक्ति के लिए बुध सफलता, संवाद-कौशल और व्यावहारिक बुद्धि देता है, किंतु छल, झूठ, चालाकी और गलत तर्क का प्रयोग करने वालों के लिए वही बुध भ्रम, वाणी दोष और निर्णयों में हानि देता है। गुरु ज्ञान, धर्म और मार्गदर्शन का ग्रह है। श्रद्धा, नैतिकता और गुरु-भाव रखने वालों को गुरु उन्नति, संरक्षण और सद्बुद्धि देता है, परंतु अहंकारी, अधार्मिक या ज्ञान का दुरुपयोग करने वालों के लिए गुरु पतन, अवसरों की हानि और मार्गभ्रष्टता का कारण बनता है। शुक्र सुख, भोग और संबंधों का ग्रह है। संयम, प्रेम और सौंदर्य-बोध रखने वालों को शुक्र वैभव, प्रेम और कला-सुख देता है, लेकिन भोग-विलास, वासना और अनैतिक संबंधों में लिप्त व्यक्ति के लिए शुक्र रोग, संबंध-विच्छेद और अपयश देता है। शनि कर्म, अनुशासन और न्याय का ग्रह है। परिश्रम, धैर्य और कर्तव्यनिष्ठा रखने वालों के लिए शनि स्थायित्व, सम्मान और दीर्घकालीन सफलता देता है, जबकि आलसी, छलपूर्ण और जिम्मेदारियों से भागने वालों के लिए वही शनि विलंब, दंड और कठोर अनुभव देता है। राहु इच्छाओं, भ्रम और असामान्यता का ग्रह है। शोध, साधना और नवीन सोच वाले व्यक्ति के लिए राहु अचानक उन्नति और विशिष्ट पहचान देता है, परंतु नशा, जुआ, लालच और छल में लिप्त व्यक्ति के लिए राहु पतन, बदनामी और आत्मविनाश की ओर ले जाता है। केतु वैराग्य, मोक्ष और अंतर्मुखता का ग्रह है। आत्मचिंतन, साधना और सत्य की खोज करने वालों को केतु गहन ज्ञान और आध्यात्मिक स्पष्टता देता है, किंतु कर्तव्य से पलायन और भ्रम में रहने वालों के लिए केतु अलगाव, दिशाहीनता और जीवन में शून्यता का अनुभव कराता है।

Aachaarya Deepak Sikka

पंचक आज से होंगे शुरू ********************** पांच दिनों के विशेष नक्षत्र संयोग को पंचक कहते हैं। इन पांच दिनों को शुभ और अशुभ कार्यों के लिए देखा जाता है। पंचक के दौरान कुछ कार्य करना बेहद अशुभ माना जाता है। पंचक पंचांग का विशेष भाग है। क्या है पंचक &#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61; जब चंद्रमा कुंभ से मीन राशि में गुजरता है, तो पंचक का प्रभाव होता है। आमतौर पर इसे पांच महत्वपूर्ण नक्षत्रों में चंद्रमा के गुजरने का समय माना जा सकता है। ये नक्षत्र है - धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, और रेवती। इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, या नए निर्माण कार्य से बचना चाहिए। पंचक अशुभ क्यों माना जाता है? &#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61; कहते हैं पंचक के समय किसी तरह के शुभ काम का परिणाम नहीं मिलता है और उस काम को पांच बार करना पड़ता है। हिंदू धर्म में जब किसी की मृत्यु भी पंचक के दौरान होती है, तो विशेष पूजा पाठ करके पंचक की शांति की जाती है। पंचक के दौरान ये काम बिल्कुल ना करें। धनिष्ठा नक्षत्र: जरूरी ना हों, तो यात्रा को टालें। गैस, पेट्रोल आदि का काम ना करवाएं। नए घर का वास्तु प्रवेश ना करें। शतभिषा नक्षत्र: इस समय नया बिजनेस शुरू ना करें। पार्टनरशिप का कोई काम करने से भी बचें। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र: इस नक्षत्र में विवाह, नए घर का वास्तु या नई गाड़ी खरीदते हैं, तो यह शुभ नहीं होता है। कार्य करने वाला व्यक्ति बीमार हो जाता है। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र: इस दौरान कोई नया काम शुरू करते हैं, तो असफलता मिलती है। रेवती नक्षत्र: इस समय काम करने से आर्थइक हानि होने की आशंका बनी रहती है। रेवती भी एक गंडमूल नक्षत्र है और इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को हर दूसरे महीने बगलामुखी पूजा करनी होती है। पंचक के प्रकार और उनका प्रभाव &#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61; पंचांग के अनुसार पंचक एक विशेष समय होता है। इसमें किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले सावधानी बरती जाती है। यह पांच दिनों की अवधि होती है। आइए, पंचक के विभिन्न प्रकारों को विस्तार से समझते हैं और जानते हैं कि किस पंचक में कौन-कौन से कार्य वर्जित माने गए हैं। पंचक के पांच प्रकार- ----------------------- रोग पंचक यह पंचक तब होता है जब पंचक की शुरुआत रविवार से होती है। इस पंचक के दौरान यज्ञ या धार्मिक अनुष्ठान जैसे कार्य करने से बचना चाहिए। राज्य या नृप पंचक यदि पंचक की शुरुआत सोमवार से होती है, तो इसे राज्य पंचक या नृप पंचक कहा जाता है। इस समय नौकरी या नई सरकारी योजनाओं में प्रवेश करना वर्जित माना जाता है। अग्नि पंचक मंगलवार से शुरू होने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है। इस समय घर का निर्माण, गृह प्रवेश, या किसी प्रकार की नई संपत्ति से जुड़े कार्य नहीं किए जाने चाहिए। चोर पंचक शुक्रवार को शुरू होने वाला पंचक चोर पंचक कहलाता है। इस समय यात्रा करने से बचा जाता है, क्योंकि चोरी या धन हानि की आशंका रहती है। मृत्यु पंचक पंचक यदि शनिवार से शुरू होता है, तो इसे मृत्यु पंचक कहते हैं। इस पंचक के दौरान विवाह, सगाई, और अन्य शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। पंचक के दौरान करें ये उपाय &#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61;&#61; पंचक के दौरान कुछ आसान उपाय करके आप इस समय को शांतिपूर्ण और शुभ बना सकते हैं। पंचक के दौरान निम्नलिखित 5 उपाय करना विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है: भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करें। जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, या धन का दान करें। पंचक के समय में असहाय गायों को हरा चारा खिलाने से शुभ फल प्राप्त होते हैं इस समय आप घर या मंदिरों में विशेष पूजा, अनुष्ठान, या हवन करवा सकते हैं। पंचक के दौरान नाखून और बाल काटने से बचना चाहिए। 🕉️🙏🚩🕉️🙏🚩🕉

Aachaarya Deepak Sikka

ब्रह्मांड आपकी व्यक्तिगत इच्छाओं या जरूरतों को नहीं समझता, बल्कि आपकी फ्रीक्वेंसी को पहचानता है। आप जिस फ्रीक्वेंसी पर वाइब्रेट कर रहे होते हैं, उसी के अनुरूप अनुभव आकर्षित करते हैं। यदि आप डर, अपराधबोध या कमी की भावना में जी रहे हैं, तो नकारात्मक अनुभव आपकी ओर खिंचते हैं। इसके विपरीत, प्रेम, आनंद और समृद्धि की फ्रीक्वेंसी पर होने से जीवन में सकारात्मक अनुभव आते हैं। यह ठीक रेडियो ट्यून करने जैसा है-जिस फ्रीक्वेंसी पर ट्यून करेंगे, वही संगीत सुनेंगे। इसलिए, अगर आप अपनी जिंदगी बदलना चाहते हैं, तो अपनी मानसिकता और ऊर्जा बदलें। ब्रह्मांड हमेशा आपकी ऊर्जा का प्रतिबिंब लौटाता है। सकारात्मक सोच और उच्च फ्रीक्वेंसी जीवन में समृद्धि और सुख को आकर्षित करती है।

Aachaarya Deepak Sikka

*ॐ नमः शिवाय* *वेदों को कण्ठस्थ करना, तथा वैदिक कर्मकाण्ड करना,भगवान की ही भक्ति है।* ****************** *पद्मपुराण के,पातालखण्ड के,85 वें अध्याय के,5 वें और छठवें श्लोक में,देवर्षि नारदजी ने,महाराज अम्बरीष जी को,वैशाखमास का माहात्म्य श्रवण कराने के पश्चात,महाराज अम्बरीष को,भक्ति के भेद बताते हुए कहा कि-* *लौकिकी वैदिकी चापि भवेदाध्यात्मिकी तथा।* *ध्यानधारणया बुद्ध्या* *वेदानां स्मरणं हि यत्।।5।।* सूत जी ने कहा कि- हे ऋषियो! भक्ताग्रगण्य महाराज अम्बरीष ने,नारद जी के मुखारविन्द से, वैशाख मास का माहात्म्य श्रवण करने के पश्चात,नारद जी से, भक्तिविषयक प्रश्न करते हुए कहा कि- हे देवर्षि नारदजी! आप के तो हृदय में,ज्ञान और भक्ति के सहित भगवान नारायण ही निवास करते हैं। ज्ञान और भक्ति के अगाध तत्त्व को जाननेवाले एकमात्र आप ही हैं। आप तो, ज्ञानियों से तथा भक्तों से सर्वदा ही सत्संग करते रहते हैं,तथा भगवान के नाम का संकीर्तन भी निरन्तर करते रहते हैं। आप तो,ज्ञान और भक्ति,दोनों के विग्रहस्वरूप ही हैं। मैं,आपके मुखारविन्द से,भक्ति के स्वरूप का श्रवण करना चाहता हूं। नारद जी ने कहा कि- *लौकिकी वैदिकी चापि भवेदाध्यात्मिकी तथा।।* **************** भक्ति,तीन प्रकार की होतीं हैं। *(1) लौकिकी* *(2)वैदिकी तथा* *(3) आध्यात्मिकी।* *मनोवाक्कायसम्भवा।* **************** ये तीनों प्रकार की भक्ति,मन से,वाक् अर्थात वाणी से तथा काया अर्थात शरीर से होतीं हैं। भगवान को उद्देश्य करके,व्रत,उपवास, करना,ये मानसिक संकल्प की दृढ़ता पूर्वक भक्ति है। भगवान के नाम का जप करना,ये भी मानसिक भक्ति है। जिह्वा से भगवान के नाम का संकीर्तन करना,ये वाक् अर्थात वाणी की भक्ति है। भगवान के मंदिर को शुद्ध स्वच्छ रखते हुए,उनके लिए विविध प्रकार के पुष्प,पुष्पमाला,आभूषण,वस्त्र,तथा स्वादिष्ट भोजन आदि निवेदन करना,ये शारीरिक भक्ति है। क्यों कि-बिना शारीरिक परिश्रम के,धन नहीं आता है। शारीरिक परिश्रम करके,धन एकत्रित करके,भगवान के लिए प्रियातिप्रिय वस्तुओं को निवेदित करना,ये शारीरिक भक्ति है। कायिक,वाचिक तथा मानसिक भक्ति में, एकमात्र भगवान ही उद्देश्य रहते हैं। लौकिकी वैदिकी इन दोनों प्रकार की भक्ति में, सांसारिक सुखों को प्राप्त करने के उद्देश्य से,की गई भगवान की भक्ति,लौकिकी भक्ति कही जाती है। *ध्यानधारणबुद्धया वेदानां स्मरणं हि यत्।।* ****************** लौकिकी भक्ति में,ध्यान से,आध्यात्मिकी भक्ति में,धारणा से,तथा वैदिकी भक्ति में,बुद्धि से भक्ति समझना चाहिए। *वेदानां स्मरणं हि यत्।* ***************** वेदों का स्मरण करना,वैदिकी भक्ति है। वेदों को,बुद्धि में स्थिर करना,भी भगवान की भक्ति है। भगवत्स्वरूप वेद हैं,तथा वेदों के मन्त्रों से ही भगवान के स्वरूप का यथार्थज्ञान होता है। वेदों के अध्ययन से,ज्ञान से ही भगवान के विषय का ज्ञान होता है। इसी को &#34;बुद्धया&#34;शब्द से वैदिकी भक्ति कहा जाता है। नेत्र,नासिका,कर्ण,त्वचा और जिह्वा,इन पांचों इन्द्रियों को नियंत्रित करके,एकाग्रचित्त होकर, वेदों का निरन्तर अभ्यास करते हुए,उनके प्रयोग की विधि का ज्ञान करके,देवतात्मक भगवान के लिए,यज्ञ आदि करना &#34;वैदिकी&#34; भक्ति है। *मंत्रवेदसमुच्चारैरविश्रान्तविचिन्तनै:।।6।।* वेद के मंत्रों का शुद्ध उच्चारण करते हुए,उन मंत्रों का, *अविश्रान्त,अर्थात विना विश्राम के,* निरन्तर चिन्तन करना ही वैदिकी भक्ति है। *जब कोई ब्राह्मण,मंत्रों का उच्चारण करते हुए,कण्ठस्थ करते हैं तो,उनकी बुद्धि में, सांसारिक अन्य किसी विषय का चिन्तन नहीं होता है।* जिस काल में,वेदों के अध्ययन का विधान है,उसी काल में,वेदों का उच्चारण करने के लिए, ब्रह्ममुहुर्त में,उठकर,शौच,स्नान, शुद्ध वस्त्र धारण करके, ध्यानपूर्वक बुद्धि में स्मरण शक्ति के बलपर, निरन्तर ही वेद मंत्रों का उच्चारण करना,यह भी भगवान की भक्ति है। *बुद्धि को नियमों में नियंत्रित करना,मन को नियमों में नियंत्रित करना,तथा शुद्ध, सात्विक भोजन आदि करना,ये सभी, वैदिकी भक्ति है।* इन्द्र नवग्रह आदि देवताओं को,वैदिक विधि के अनुसार,विविध प्रकार के संयम करते हुए, देवताओं के सहित भगवान को प्रसन्न करना,वैदिकी भक्ति है। *इसका तात्पर्य यह है कि- सांसारिक सुखों को त्यागकर,नियम संयम पूर्वक,एकमात्र भगवान का ध्यान करना,धारणा और ध्यान है।* *ध्यान और धारणा,दोनों ही आध्यात्मिकी भक्ति है।* *संयम नियम पूर्वक,गुरु की सेवा करते हुए,वेदों को शुद्ध उच्चारण के साथ साथ,उसके प्रयोगविधि को जानकर,उन मंत्रों का,सामग्री सहित उपयोग करना,भक्ति है।* *अपनी अपनी शक्ति के अनुसार,भक्तगण, भगवान की भक्ति करके,भगवान के प्रिय हो जाते हैं।* *इसका अभिप्राय यह है कि- तनसुखों का परित्याग करके,भगवान को उद्देश्य करके,आत्मप्राप्ति को उद्देश्य करके,किए जानेवाले आध्यात्मिक वैदिकी विधि को आत्मसात करना ही भगवान की भक्ति है।

Aachaarya Deepak Sikka

*ॐ नमः शिवाय* अपनी पत्नी के विश्वासघात ने राजा भर्तृहरि को जगा दिया। प्राचीन उज्जैन में बड़े प्रतापी राजा हुए राजा भर्तृहरि जिनके पास विशाल साम्राज्य था। उनकी पिंगला नाम की अत्यंत रूपवती रानी थी। राजा को रानी के ऊपर अटूट विश्वास एवं प्रेम था परंतु वह रानी राजा के बदले एक अश्वपाल से प्रेम करती थी और वह अश्वपाल भी रानी के बदले राजनर्तकी को चाहता था। वह राजनर्तकी अश्वपाल की जगह राजा भर्तृहरि को स्नेह करती थी। उस समय उज्जैन में एक तपस्वी गुरु गोरखनाथ का आगमन हुआ। गोरखनाथ राजा के दरबार में पहुंचे। भर्तृहरि ने गोरखनाथ का उचित आदर-सत्कार किया। इससे तपस्वी गुरु अति प्रसन्न हुए। प्रसन्न होकर गोरखनाथ ने राजा एक फल दिया और कहा कि यह खाने से वह सदैव जवान बने रहेंगे, कभी बुढ़ापा नहीं आएगा, सदैव सुंदरता बनी रहेगी। राजा ने रानी के मृत्यु के वियोग के भय से उसे अमर बनाने के लिए वह फल खाने के लिए रानी को दिया। परंतु मोहवश रानी ने वह फल अश्वपाल को दे दिया। अश्वपाल ने वह राजनर्तकी को दे दिया। किन्तु राजनर्तकी ने जब वह फल राजा को दिया, तभी यह सारा सत्य बाहर आया। रानी की बेवफाई को देखकर राजा के पैरों तले की जमीन खिसक गयी। राजा भर्तृहरि ने बाद में अपने नीतिशतक में इस घटना के बारे में लिखा हैः *यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता।* *साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः।* *अस्मत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या।* *धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च।।* &#39;मैं जिसका सतत चिंतन करता हूँ वह (पिंगला) मेरे प्रति उदासीन है। वह (पिंगला) भी जिसको चाहती है वह (अश्वपाल) तो कोई दूसरी ही स्त्री (राजनर्तकी) में आसक्त है। वह (राजनर्तकी) मेरे प्रति स्नेहभाव रखती है। उस (पिंगला) को धिक्कार है ! उस अश्वपाल को धिक्कार है ! उस (राजनर्तकी) को धिक्कार है ! उस कामदेव को धिक्कार है और मुझे भी धिक्कार है !&#39; उनके अंतरचक्षु खुल गये। उन्होंने रनिवास, सिंहासन और राजपाट सब छोड़कर विवेकरूपी कटार से तृष्णा एवं राग की बेल को एक ही झटके में काट दिया। फिर जंगलों में भटकते-भटकते भर्तृहरि ने गुरु गोरखनाथ के चरणों में निवेदन कियाः &#34;हे नाथ ! मैंने सोने की थाली में भोजन करके देख लिया और चाँदी के रथ में घूमकर भी देख लिया। यह सब करने में मैंने अपनी आयुष्य को बरबाद कर दिया। अब मैं यह अच्छी तरह जान चुका हूँ कि ये भोग तो बल, तेज, तंदरुस्ती और आयुष्य का नाश कर डालते हैं। मनुष्य की वास्तविक उन्नति भोग-पूर्ति में नहीं वरन् योग में है। इसलिए आप मुझ पर प्रसन्न होकर योगदीक्षा देने की कृपा करिये।&#34; राजा भर्तृहरि की उत्कट इच्छा एवं वैराग्य को देखकर गोरखनाथ ने उन्हें दीक्षा दी एवं तीर्थाटन की आज्ञा दी। तीर्थाटन करते-करते, साधना करते-करते भर्तृहरि ने आत्मानुभव पा लिया। उसके बाद कलम उठाकर उन्होंने सौ-सौ श्लोक की तीन छोटी-छोटी पुस्तकें लिखीं- *वैराग्यशतक, नीतिशतक एवं शृंगारशतक।* ये आज विश्व-साहित्य के अनमोल रत्न हैं। इस प्रकार जिसके पूर्वजन्मों के संस्कार अथवा पुण्य जगे हों तब कोई वचन, कथा अथवा घटना उसके हृदय को छू जाती है और उसके जीवन में विवेक-वैराग्य जाग उठता है, उसके जीवन में महान् परिवर्तन आ जाता है

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*ॐ नमः शिवाय* *!!लक्ष्य!!* *मार्ग से भटकाने वाले लोगों पर ध्यान न देकर अपने निर्धारित लक्ष्य की और बढ़ें।* एक बार स्वामी विवेकानंद रेल से कहीं जा रहे थे। वह जिस डिब्बे में सफर कर रहे थे, उसी डिब्बे में कुछ अंग्रेज यात्री भी थे। उन अंग्रेजों को साधुओं से बहुत चिढ़ थी। वे साधुओं की भर-पेट निंदा कर रहे थे। साथ वाले साधु यात्री को भी गाली दे रहे थे। उनकी सोच थी कि चूँकि साधू अंग्रेजी नहीं जानते, इसलिए उन अंग्रेजों की बातों को नहीं समझ रहे होंगे। इसलिए उन अंग्रेजो ने आपसी बातचीत में साधुओं को कई बार भला-बुरा कहा। हालांकि उन दिनों की हकीकत भी थी कि अंग्रेजी जानने वाले साधु होते भी नहीं थे। रास्ते में एक बड़ा स्टेशन आया। उस स्टेशन पर विवेकानंद के स्वागत में हजारों लोग उपस्थित थे, जिनमें विद्वान् एवं अधिकारी भी थे। यहाँ उपस्थित लोगों को सम्बोधित करने के बाद अंग्रेजी में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर स्वामीजी अंग्रेजी में ही दे रहे थे। इतनी अच्छी अंग्रेजी बोलते देखकर उन अंग्रेज यात्रियों को सांप सूंघ गया, जो रेल में उनकी बुराई कर रहे थे। अवसर मिलने पर वे विवेकानंद के पास आये और उनसे नम्रतापूर्वक पूछा– आपने हम लोगों की बात सुनी। आपने बुरा माना होगा ? स्वामीजी ने सहज शालीनता से कहा– “मेरा मस्तिष्क अपने ही कार्यों में इतना अधिक व्यस्त था कि आप लोगों की बात सुनी भी पर उन पर ध्यान देने और उनका बुरा मानने का अवसर ही नहीं मिला।” स्वामीजी की यह जवाब सुनकर अंग्रेजों का सिर शर्म से झुक गया और उन्होंने चरणों में झुककर उनकी शिष्यता स्वीकार कर ली। *शिक्षा:—* हमें अपने आसपास कुछ नकारात्मक लोग जरूर मिलेंगे। वे हमें हमारे लक्ष्य से भटकाने की कोशिश करेंगे। लेकिन हमें ऐसे लोगों की बातों पर ध्यान न देकर सदैव अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए।

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*ॐ नमः शिवाय* *-सच्ची तथा सही साधक की सिद्धियाँ-* कोई भी साधक अपने इष्ट के निरंतर नाम जप से यहीं अनुभूति का आभास करता है १- शरीर में हल्कापन और मन में उत्साह होता है । २- शरीर में से एक विशेष प्रकार की सुगन्ध आने लगती है । ३- त्वचा पर चिकनाई और कोमलता का अंश बढ़ जाता है । ४- तामसिक आहार-विहार से घृणा बढ़ जाती है और सात्त्विक दिशा में मन लगने लगता है । ५- स्वार्थ का कम और परमार्थ का अधिक ध्यान रहता है । ६- नेत्रों में तेज झलकने लगता है । ७- किसी व्यक्ति या कार्य के विषय में वह जरा भी विचार करता है, तो उसके सम्बन्ध में बहुत-सी ऐसी बातें स्वयमेव प्रतिभासित होती हैं, जो परीक्षा करने पर ठीक निकलती हैं। ८- दूसरों के मन के भाव जान लेने में देर नहीं लगती । ९ - भविष्य में घटित होने वाली बातों का पूर्वाभास मिलने लगता है । १० - शाप या आशीर्वाद सफल होने लगते हैं। अपनी गुप्त शक्तियों से वह दूसरों का बहुत कुछ लाभ या बुरा कर सकता है।

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*ॐ नमः शिवाय* *गौ,तुलसी,और पीपल की प्रदक्षिणा करने से, तीर्थयात्रा का फल प्राप्त होता है।* ****************** *पद्मपुराण के,स्वर्गखण्ड के,40 वें अध्याय के,9 वें श्लोक में,नारद जी ने, धर्मराज युधिष्ठिर को,गौ,तुलसी तथा अश्वत्थ अर्थात पीपल के वृक्ष का माहात्म्य बताते हुए कहा कि-* *अश्वत्थस्य तुलस्याश्च गवां कुर्यात् प्रदक्षिणाम्।* *सर्वतीर्थं फलं प्राप्य विष्णुलोके महीयते।।* प्रत्येक धार्मिक स्त्री पुरुषों को,अपने जीवन के कर्तव्य का ज्ञान होना चाहिए। शास्त्रों में, प्रत्येक स्त्री पुरुष के कर्तव्यों का वर्णन है। हमको क्या करना चाहिए,यदि यही ज्ञान नहीं है तो,ऐसे अनभिज्ञ धार्मिक स्त्री पुरुष तो अपनी स्वेच्छा से,अथवा किसी अन्य अज्ञानी धार्मिक स्त्री पुरुषों की क्रिया को देखकर कुछ भी असावधानी पूर्वक करते रहेंगे,तो सत्कर्म का जैसा फल प्राप्त होना चाहिए था,जितना फल प्राप्त होना चाहिए था,तथा जितने समय में फल प्राप्त होना चाहिए था,वह फल प्राप्त नहीं होने पर,अश्रद्धा उत्पन्न हो जाती है। यदि एकबार अश्रद्धा और अविश्वास हुआ तो, धार्मिक कर्म करने की इच्छा ही समाप्त हो जाएगी। यदि धार्मिक कार्यों को करने की इच्छा ही समाप्त हो गई तो, भविष्य में,जो भी कुछ अच्छा होनेवाला होगा,वह भी नहीं होगा। *प्रत्येक धार्मिक श्रद्धालु, स्त्री पुरुषों को,शास्त्रों के अनुसार विधि करते हुए, धैर्यपूर्वक धर्माचरण सत्कर्म आदि करना चाहिए।* सत्कर्म के सम्पूर्ण फल की अप्राप्ति में,सर्वप्रथम तो अज्ञान,अनभिज्ञता ही कारण है। इसके पश्चात तो अनेकों प्रकार के कारण हो सकते हैं। किन्तु मुख्य कारण तो अज्ञान ही है। अति अल्प प्रयास और अभ्यास से, पुण्य फल की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में,जैसे जैसे व्यक्ति होते हैं,उनके लिए,वैसा वैसा ही विधान प्राप्त होता है। यदि कोई धार्मिक स्त्री पुरुष, तीर्थयात्रा करने में शारीरिक बल से क्षीण हैं। या शारीरिक रोग के कारण या मानसिक ताप के कारण, तीर्थयात्रा करने में असमर्थ हैं तो,उनके लिए भी, शास्त्रों में,शक्ति सामर्थ्य को देखते हुए विधान किया गया है। *जिसके जितना बल।* *उसको उतना फल।* अब आइए,कल्याण के,इस सरलतम उपाय स्वरूप शास्त्रीय विधि पर विचार करते हैं। *अश्वत्थस्य तुलस्याश्च गवां कुर्यात् प्रदक्षिणाम् ।।* ****************** *अश्वत्थस्य,अर्थात पीपल की,तुलस्याश्च,अर्थात तुलसी की,गवाम् अर्थात गौ की,प्रदक्षिणाम् कुर्यात् अर्थात प्रदक्षिणा अर्थात कुर्यात् अर्थात करना चाहिए।* अब इससे अच्छा सरलतम उपाय और क्या हो सकता है! तुलसी अपने गृह में ही होती है। पीपल भी प्रायः सर्वत्र प्राप्त होता है। गौ माता भी प्रायः सर्वत्र प्राप्त होतीं हैं। यदि इन तीनों की प्रदक्षिणा की जाए तो,उसका फल भी देख लीजिए! *सर्वतीर्थं फलं प्राप्य विष्णुलोके महीयते।।* **************** गौ,तुलसी तथा *अश्वत्थ अर्थात पीपल* की प्रदक्षिणा करनेवाले स्त्री पुरुषों को, *सर्वतीर्थम् अर्थात भारत के जितने भी तीर्थ हैं,* चारों धाम,द्वादश ज्योतिर्लिंग आदि सभी तीर्थों में दर्शन करने का जो फल होता है,गंगा आदि दिव्य नदियों में स्नान आदि करने का जो फल प्राप्त होता है,वे उनकी प्रदक्षिणा करके उन्हीं फलों को प्राप्त कर लेते हैं। यदि कोई निर्धन,निर्बल निर्बुद्धि स्त्री पुरुष हैं,उनको मात्र इतनी ही शिक्षा दी जाए कि- गौ,तुलसी और पीपल की प्रदक्षिणा किया करो, और यदि वह इतना कार्य,सदा ही करते हैं तो,जो धनवानों को,सबलों,समर्थों को सभी तीर्थों की प्रदक्षिणा का फल प्राप्त होता है,वही फल,उन निर्धन,निर्बल निर्बुद्धि स्त्री पुरुषों को गौ,तुलसी और पीपल की प्रदक्षिणा करने मात्र से फल प्राप्त होगा। *यदि कोई सबल,धनवान बलवान विद्वान व्यक्ति भी इनकी प्रदक्षिणा करेंगे तो,उनको भी वही सर्वतीर्थाटन करने फल प्राप्त होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है।* अब इस शरीर की पूर्णायु के पश्चात का फल सुनिए! *विष्णुलोके महीयते।* ***************** *गौ, तुलसी और पीपल की प्रदक्षिणा कर्ताओं को,शरीर त्याग के पश्चात,विष्णुलोक अर्थात भगवान का धाम प्राप्त होगा।* *तुलसी भी भगवान विष्णु को अतिप्रिय है। गौ माता की रक्षा के लिए तो वे अवतार लेकर ही आते हैं। अश्वत्थ अर्थात पीपल तो उनका ही स्वरूप है।* *इसका तात्पर्य यह है कि- भगवान को प्रसन्न करने के लिए तथा अपना कल्याण करने के लिए,अतिलघु,सरलतम उपाय, शास्त्रों में, ऋषियों मुनियों ने बताए हैं। यदि कोई स्त्री पुरुष,इतना सरल उपाय करके भी,अपना कल्याण नहीं कर सकते हैं तो,वह मनुष्य ही कैसे कहा जाएगा!

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*ॐ नमः शिवाय* *आज की कथा* *ठाकुर जी के पागल* एक बार नामदेव जी अपनी कुटिया के बाहर सोये हुए थे तभी अचानक उनकी कुटिया में आग लग गयी। नामदेव जी ने सोचा आज तो ठाकुर जी अग्नि के रूप में आये हैं तो उन्होंने जो भी सामान बाहर रखा हुआ था वो भी आग में ही डाल दिया। तब लोगों ने देखा और जैसे तैसे आग बुझा दी और चले गये। ठाकुर जी ने सोचा इसने तो मुझे सब कुछ अर्पण कर दिया है ठाकुर जी ने उनके लिए बहुत ही सुन्दर कुटिया बना दी। सुबह लोगों ने देखा कि वहाँ तो बहुत सुंदर कुटिया बनी हुई है ! उन्होंने नामदेव जी को कहा रात को तो आपकी कुटिया में आग लग गयी थी फिर ये इतनी सुंदर कुटिया कैसे बन गयी? हमे भी इसका तरीका बता दीजिए। नामदेव जी ने कहा सबसे पहले तो अपनी कुटिया में आग लगाओ फिर जो भी सामान बचा हो वो भी उसमे डाल दो। लोगो ने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा और कहा अजीब पागल है। नामदेव जी ने कहा.. वो ठाकुर तो पागलों के ही घर बनाता है।

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*ॐ नमः शिवाय* *आज की कथा* *कुआं* एक बार राजा भोज के दरबार में एक सवाल उठा कि *ऐसा कौन सा कुआं है जिसमें गिरने के बाद आदमी बाहर नहीं निकल पाता?* इस प्रश्न का उत्तर कोई नहीं दे पाया। आखिर में राजा भोज ने मंत्री से कहा कि *इस प्रश्न का उत्तर सात दिनों के अंदर लेकर आओ, वरना आपको अभी तक जो इनाम धन आदि दिया गया है,वापस ले लिए जायेंगे तथा इस नगरी को छोड़कर दूसरी जगह जाना होगा।* छः दिन बीत चुके थे। राज पंडित को जबाव नहीं मिला था। निराश होकर वह जंगल की तरफ गया। वहां उसकी भेंट एक गड़रिए से हुई। गड़रिए ने पूछा - *आप तो राजपंडित हैं, राजा के दुलारे हो फिर चेहरे पर इतनी उदासी क्यों?* यह गड़रिया मेरा क्या मार्गदर्शन करेगा? सोचकर पंडित ने कुछ नहीं कहा। इसपर गडरिए ने पुनः उदासी का कारण पूछते हुए कहा - *पंडित जी हम भी सत्संगी हैं,हो सकता है आपके प्रश्न का जवाब मेरे पास हो, अतः नि:संकोच कहिए।* राज पंडित ने प्रश्न बता दिया और कहा कि अगर कलतक प्रश्न का जवाब नहीं मिला तो राजा नगर से निकाल देगा। गड़रिया बोला - *मेरे पास पारस है उससे खूब सोना बनाओ। एक भोज क्या लाखों भोज तेरे पीछे घूमेंगे।बस,पारस देने से पहले मेरी एक शर्त माननी होगी कि तुझे मेरा चेला बनना पड़ेगा।* राज पंडित के अंदर पहले तो अहंकार जागा कि *दो कौड़ी के गड़रिए का चेला बनूं?* लेकिन स्वार्थ पूर्ति हेतु चेला बनने के लिए तैयार हो गया। गड़रिया बोला - *पहले भेड़ का दूध पीओ फिर चेले बनो।* राजपंडित ने कहा कि *यदि ब्राह्मण भेड़ का दूध पीयेगा तो उसकी बुद्धि मारी जायेगी।* मैं दूध नहीं पीऊंगा। तो जाओ, मैं पारस नहीं दूंगा - गड़रिया बोला। राज पंडित बोला - ठीक है,दूध पीने को तैयार हूं,आगे क्या करना है? गड़रिया बोला- *अब तो पहले मैं दूध को झूठा करूंगा फिर तुम्हें पीना पड़ेगा।* राजपंडित ने कहा - *तू तो हद करता है! ब्राह्मण को झूठा पिलायेगा?* तो जाओ, गड़रिया बोला। राज पंडित बोला - *मैं तैयार हूं झूठा दूध पीने को ।* गड़रिया बोला- *वह बात गयी।अब तो सामने जो मरे हुए इंसान की खोपड़ी का कंकाल पड़ा है, उसमें मैं दूध दोहूंगा,उसको झूठा करूंगा, कुत्ते को चटवाऊंगा फिर तुम्हें पिलाऊंगा।तब मिलेगा पारस। नहीं तो अपना रास्ता लीजिए।* राजपंडित ने खूब विचार कर कहा- *है तो बड़ा कठिन लेकिन मैं तैयार हूं।* गड़रिया बोला- *मिल गया जवाब। यही तो कुआं है लोभ का, तृष्णा का जिसमें आदमी गिरता जाता है और फिर कभी नहीं निकलता। जैसे कि तुम पारस को पाने के लिए इस लोभ रूपी कुएं में गिरते चले गए।*

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*ॐ नमः शिवाय* *भगवान की चिट्ठी* एक घर में मां बेटी रहती थी रात का समय था। दरवाजे पर खटखटाने की आवाज आई मांँ और बेटी बहुत गरीब थे। छोटे से घर में रहते थे बेटी ने दरवाजा खोला तो वहां पर कोई नहीं था। नीचे देखा तो चिट्ठी पड़ी हुई थी। बेटी ने चिट्ठी खोलकर पढ़ी, तो हाथ कांपने लगा और जोर से चिल्लाई मांँ इधर आओ चिट्ठी में लिखा था बेटी मैं तुम्हारे घर आऊंगा तुमसे और तुम्हारी मांँ से मिलने और नाम की जगह नीचे लिखा था भगवान। मांँ ने कहा यह शायद हमारी गली के किसी लड़के ने तुम्हें छेड़ने के लिए बहुत ही गंदी शरारत की है। लेकिन बेटी को मांँ की बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था। बेटी बोली मांँ पता नहीं क्यों मुझे यह सच लग रहा है। मांँ को मना कर बेटी और मांँ दोनों तैयारी में लग गई, घर भले ही छोटा सा था लेकिन दिल बहुत अमीर। घर पर एक चटाई थी मेहमानों के लिए.... निकाल कर बिछा दी और रसोई घर में जाकर देखा तो खाने का एक दाना नहीं था। बेटी और मां दोनों गहरी सोच में पड़ गए । यदि भगवान सच में आ गए तो खाने में कुछ नहीं दे पाएंगे। आगे पीछे का कुछ नहीं सोचा बचत के 300 रुपए बेटी के पास थे। पैसे लेकर वह छाता और कंबल लेकर किराने की दुकान के लिए निकल पड़ी। बारिश होने वाली थी और ठंड भी बहुत ज्यादा थी एक पैकेट दूध एक मिठाई का बॉक्स और कुल 200 रुपये की चीजें खरीद कर वापस लौट आए। क्योंकि उन्हें लगा शायद भगवान घर पर पहुंच गए होंगे घर से थोड़ी दूर पहुंची तो देखा कि जोर से बारिश शुरू हो गई और सड़क किनारे एक पति-पत्नी खड़े थे और ऑटो पास से गुजरा तो लड़की ने देखा उनके हाथ में छोटा बच्चा रो रहा था स्थिति कुछ ठीक नहीं लग रही थी। ऑटो घर के दरवाजे पर पहुंचा। मां ऑटो से उतरी थी की बेटी से रहा नहीं गया। बोली ऑटो वाले भैया जरा ऑटो को उनके पास ले लो पास जाकर देखा तो बच्चे को तेज बुखार था और उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था एक तरफ भगवान घर पर आने वाले हैं और दूसरी तरफ यह समस्या बेटी ने सोचा भगवान को मना लूंगी लेकिन यदि इन्हें ऐसे ही हाल में छोड़ दिया गया तो भगवान बिल्कुल भी माफ नहीं करेंगे। बेटी ने जो-जो खरीदा था सब उनके हाथ में थमा दिया और तो और बचे हुए पचास रुपए भी दे दिए और बोली अभी मेरे पास इतना ही है इसलिए रख लीजिए बारिश हो रही थी तो छाता भी दे दिया और बच्चे को ठंड न लगे इसलिए कंबल भी दे दिया। वहां से फटाफट घर पहुंचे यह सोचकर कि भगवान आ गए होंगे लेकिन दरवाजे पर मां खड़ी थी बोली आने में इतनी देर क्यों लगा दी बेटी, और यह देख एक और चिट्ठी आई है। पता नहीं किसकी है बेटी ने पढ़ना शुरू किया उसमें लिखा था..... बेटी.. आज तुमसे मिलकर बहुत खुशी हुई... पहले से दुबली हो गई हो.. लेकिन आज भी उतनी ही सुंदर हो... मिठाई बहुत अच्छी थी और तुम्हारे दिए हुए कंबल से बहुत आराम मिला। छाता देने के लिए धन्यवाद बेटी। अगली बार मिलते ही लौटा दूंगा बेटी के तो होश उड़ गए निशब्द होकर पीछे मुड़कर सड़क किनारे देखा तो वहां कोई नहीं था चिट्ठी में आगे लिखा था इधर उधर मत ढूंढो मुझे मैं तो कण-कण में हूं जहां पवित्र सोच हो मैं हर उस मन में हूं यदि दिखे कोई जरूरतमंद तो मैं उस हर जरूरतमंद मे हूं बेटी जोर से रो पड़ी और मां को सब बताया दोनों बहुत भावुक हो गए और पूरी रात सो नहीं पाए। दोस्तों अब आप सभी से एक प्रश्न है यह बेटी सच में गरीब थी जरा सोचिए और अपने दिल से इस सवाल का जवाब दीजिएगा क्योंकि व्यक्ति मरने के बाद अपने साथ पैसे नहीं बल्कि कर्म लेकर जाता है और जरूरी नहीं कि हर पैसे वाला व्यक्ति अच्छे कर्म लेकर जा रहा हो इसीलिए कोशिश करें कि पैसों से अमीर हो या गरीब लेकिन कर्मों से अमीर जरूर बने

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*ॐ नमः शिवाय* *राधा की मौन आरती।* एक बार राधा जी बरसाने के वन में बैठी थीं। संध्या का समय था, मंद पवन बह रही थी, और गोकुल से बाँसुरी की मधुर धुन गूँज रही थी। सखी ने पूछा — “राधे, तुम रोज़ उसी दिशा में क्यों देखती हो?” राधा मुस्कुराईं — “क्योंकि वहाँ से स्वर नहीं, स्मृति आती है… हर स्वर के साथ कृष्ण की एक झलक उतरती है मेरे हृदय में।” सखी बोली — “पर वो तो आज आए भी नहीं।” राधा ने आँखें मूँद लीं और बोलीं — “जब प्रेम सच्चा हो, तब मिलन के लिए देह नहीं, भाव ही पर्याप्त होता है। मैं जिस भाव में उन्हें पुकारती हूँ, वो उसी भाव में प्रकट हो जाते हैं — कभी हवा की छुअन में, कभी धूप की किरण में, कभी बस इस मौन में...” तभी हवा से एक पुष्प गिरा — और वह राधा के चरणों में आ टिका। सखियाँ चकित थीं, पर राधा बस मुस्कुराईं — “देखो सखियों, आज कृष्ण ने मौन आरती भेजी है। भावार्थ: जब हृदय में सच्ची भक्ति और प्रेम हो, तो भगवान दूर नहीं रहते, वे हर अनुभूति में उतर आते हैं — जैसे राधा के हृदय में कृष्ण सदैव बसे हैं। *आचार्य दीपक सिक्का* *संस्थापक ग्रह चाल कंसल्टेंसी*

Aachaarya Deepak Sikka

*धनु राशि में अमावस्या* चंद्रमा धनु राशि के प्रारंभ में सूर्य से युति करता है, मूल नक्षत्र में। ‘मूल’ का अर्थ है जड़—जो हमारे ब्रह्मांडीय उद्गम (इस राशि के माध्यम से देखे जाने वाले आकाशगंगा केंद्र) और हमारे व्यक्तिगत व सामूहिक पारिवारिक तथा प्रजातीय मूलों की ओर संकेत करता है। जैसे-जैसे हम छुट्टियों के समय में प्रवेश करते हैं और उन रिश्तेदारों से पुनः जुड़ते हैं जिनसे पूरे वर्ष भेंट नहीं हो पाती, ये विषय अक्सर उभरकर सामने आते हैं। मूल नक्षत्र हमें बातों की जड़ तक पहुँचने में सहायता करता है और उन लंबे समय से जमी मान्यताओं को उजागर करता है जिन्हें छोड़ने की आवश्यकता होती है। इसका प्रतीक—जड़ों का गुच्छा—उपचार की ओर भी संकेत करता है, विशेषकर औषधियों (जड़ी-बूटियों) के माध्यम से। यह ऐसा समय है जब पारिवारिक घाव भर सकते हैं, किंतु यह प्रक्रिया गहरी पीड़ा भी ला सकती है, क्योंकि दबी हुई बातें सामने आती हैं। मूल नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता निरृति हैं—‘विनाश की देवी’—जो हमें स्मरण कराती हैं कि सत्य के मार्ग में जो भी बाधक है, उसे हटाया जाना चाहिए। याद रखें कि हर व्यक्ति के पास अपने-अपने सत्य का संस्करण होता है, विशेषकर जब साइडेरियल मिथुन में गुरु वक्री होकर विचारों को और अधिक प्रबल कर रहा हो। मंगल के अस्त होने और शुक्र के वृश्चिक-धनु संधि को पार करने से तनाव बढ़ सकता है और बहस आसानी से भड़क सकती हैं। शांति बनाए रखने के लिए संवेदनशील विषयों पर चर्चा से बचें और केवल भोजन का आनंद लें—जब तक कि वातावरण साफ़ करना आवश्यक न हो। यह अमावस्या संक्रांति से एक दिन पहले घटित होती है, जो स्वयं एक महत्वपूर्ण मोड़ है, और गुरु—जो इस अमावस्या का स्वामी है—अपने वक्री चरण के मध्य बिंदु पर तेज़ी से चमक रहा है। अंततः यह काल अपने भीतर के सत्य से पुनः जुड़ने का है, ताकि आप दूसरों के भीतर के सत्य से अधिक गरिमा और सहजता के साथ मिल सकें।

Aachaarya Deepak Sikka

*वैदिक देवता : स्वरूप, वर्गीकरण और प्रमुख विशेषताएँ* वैदिक देवता भारतीय संस्कृति और धर्म का आधार हैं। वेदों में देवताओं का उल्लेख दिव्य शक्तियों के रूप में किया गया है, जो प्राकृतिक शक्तियों, जीवन-मूल्यों और ब्रह्मांडीय व्यवस्थाओं के प्रतीक हैं। देवता केवल पूजा के पात्र नहीं, बल्कि वेदों की ऋचाओं में मानव-रूप में चित्रित ऐसे आदर्श हैं, जिनके माध्यम से मानवता को दिशा, प्रेरणा और सुरक्षा मिलती है। *देवता की परिभाषा* देवता किसी दिव्य शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। देव वह है- *जो कुछ देते हैं (दाता)।* *जो स्वयं प्रकाशमान हैं।* *जो दूसरों को प्रकाशमान करते हैं।* *जिनमें असाधारण और दिव्य शक्ति है।* *जिन्हें अमरता का वरदान प्राप्त है।* यक्ष के अनुसार, जो लोकों में भ्रमण करते हैं, प्रकाशित होते हैं, और जीवन के सुख-साधनों को प्रदान करते हैं, वे देवता कहलाते हैं। वेदों में देवताओं को प्राणी के रूप में, मानवीय रूप देकर प्रस्तुत किया गया है तथा प्रत्येक देवता का प्रकृति के किसी तत्व से संबंध जोड़ा गया है, जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सूर्य, चंद्रमा, मेघ आदि। *वैदिक देवताओं का वर्गीकरण* यक्ष ने वैदिक देवताओं को तीन मुख्य वर्गों में विभाजित किया है: (a) पृथ्वी-स्थानीय देवताः अग्नि, सोम, बृहस्पति, त्वष्टा, प्रजापति, विश्वकर्मा, आदिति-दिति देवियाँ, नदियाँ आदि। (b) अंतरिक्ष-स्थानीय देवताः इंद्र, वायु, मातरिश्वा, रुद्र, मरुत, पर्जन्य, आपः (जल), अपांनपात, त्रित-आप्त आदि। (c) घौस्थानीय (आकाश) देवताः धौस, आदित्य, सविता, सूर्य, मित्र, वरुण, अश्विन, अयर्मा आदि। *तीन प्रमुख देवता-पृथ्वी के लिए अग्नि, अंतरिक्ष के लिए इंद्र, और आकाश के लिए सूर्य-माने गए हैं।* *प्रमुख वैदिक देवता* *1) अग्नि* भूमिकाः पृथ्वी-स्थानीय प्रमुख देवता, यज्ञ के माध्यम से देवताओं और मानवों के मध्य सेतु। ऋग्वेद: 200 सूक्त, 268 नाम। रूपः भौतिक (पत्थर, जल, मेघ), मानविकृत (तेजस्वी जबड़े, स्वर्णिम दांत), पशु (वृषभ, अश्व)। विशेषताएँ: अग्नि के बिना कोई भी यज्ञ या दैवी कार्य संभव नहीं। अग्नि सभी देवताओं के लिए द्रव्य ग्रहण करने का माध्यम है। अग्नि को सात जिह्वाएँ (जीभ) प्राप्त हैं। अग्नि मानवीय आवासों का प्रतिदिन का अतिथि है। अथर्ववेद में अग्नि के सात मुख बताए गए हैं। *2) सोम* भूमिकाः औषधियों का राजा, अमरता का द्रव्य, युद्ध में इंद्र के सहयोगी। ऋग्वेदः नवम मंडल पेयमान सोम&#39;। रूपः द्रव्य (सोमलता से प्राप्त रस), मानव रूप (योद्धा)। विशेषताएँ: सोमरस को शक्तिवर्धक, रोगनाशक और बौद्धिक क्षमता बढ़ाने वाला माना गया है। ऋग्वेद में कहा गया है, &#34;हमने सोमपान किया और अमर हो गए।&#34; सोमलता के प्राप्तिस्थानः मुंजवत पर्वत, अंशुमती नदी, हिमालय, महेंद्र, मलय पर्वत आदि। *3) बृहस्पति* भूमिकाः देवताओं के गुरु, बुद्धि और ज्ञान के देवता। ऋग्वेदः 11 सूक्त। विशेषताएँ: बृहस्पति के पास तीर, धनुष, कुल्हाड़ी और रथ जैसे आयुध हैं। राक्षसों पर विजय में बृहस्पति की प्रमुख भूमिका है। *4) इंद्र* भूमिकाः युद्ध, वर्षा, शासन, आर्यों के रक्षक। ऋग्वेद: 250 सूक्त। विशेषताएँ: इंद्र को पुरंदर, शतक्रतु, नर्य आदि नामों से जाना जाता है। वज्रधारी, सेनापति, गोप (गोपति), इंद्राणी (पत्नी), पृथ्वी (माता)। रूप: इंद्र का वर्ण स्वर्णिम, लंबी दाढ़ी और केश। उत्तर वैदिक काल में वर्षा के देवता के रूप में प्रसिद्ध।

Rushil Dodiya

कहेगा फूल हर कली से बार बार जीना इसी का नाम है - शैलेंद्र

Rushil Dodiya

जो तुझे जानता न हो उस से तेरा नाम पूछना ये मुझे क्या हो गया ? - गुलज़ार

Rushil Dodiya

जहां तेरी एडी से धूप उड़ा करती थी सुना है उस चौखट पे अब शाम रहा करती है - गुलज़ार

सीमा कपूर

बचपन अच्छा था.. कम से कम सच्चा था.. बस हा और ना/ बहस और झगड़े से दूर था! - सीमा कपूर

Sejal Raval

#લાગણીઓની સફરે સેજલ રાવલ

Saliil Upadhyay

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Bhavna Bhatt

જય ચેહર મા 🙏

S A Y R I K I N G

मैं पूजता हूँ अपने इश्क़ को, दीये की तरह जलना तो लाजिमी हैं मेरा... मेरा इश्क़ ही, मेरी इबादत है..... (जिसमें मैं खुद जल कर उसे रोशनी देता हूं और अपने तले अंधेरा रखता हूं)

ज़ख्मी__दिल…सुलगते अल्फ़ाज़

🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 ┤_★__ तमाम उम्र का हासिल था जो, वो              हार आए हम, तेरी इक मुस्कुराहट पर ख़ुद को             वार आए हम, ━❥ लकीरें  हाथ  की,  मिटती  गईं            सजदों में तेरे, मगर  हर  ज़ख्म  को  अपना ही    साज़-ओ-सिंगार आए हम, ━❥ ये दुनिया माँगती है रोशनी अपनी                चरागों से, मगर आँखों का सारा नूर, तुम पे             वार आए हम, ━❥ सुना था! इश्क़ में अक्सर सँवर            जाते हैं दीवाने, मगर इस खेल में पाकर भी सब          कुछ हार आए हम, ━❥ कहाँ  तक  ढूँढती  ये  तिश्नगी         साहिल के नज़ारे, तेरी आँखों के  दरिया में उतर       उस पार आए हम…🔥 ╭─❀💔༻  ╨──────────━❥ ♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦ #LoVeAaShiQ_SinGh☜ ╨──────────━❥

ज़ख्मी__दिल…सुलगते अल्फ़ाज़

🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 ┤_★__ सुकून की चाह में अब, दर-बदर              नहीं फिरता, बिखर गया हूँ मगर टूट कर नहीं                  गिरता, ━❥ जो उलझने सताती  थीं कभी         अब हमनवा हैं मेरी, कि इनके बगैर अब, मेरा गुज़ारा              नहीं होता…🔥 ╭─❀💔༻  ╨──────────━❥ ♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦ #LoVeAaShiQ_SinGh☜ ╨──────────━❥

ज़ख्मी__दिल…सुलगते अल्फ़ाज़

🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 ┤_★__ वही है बेकली मेरी वही बेचैनियाँ                    मेरी, मुकम्मल  हो  गई  अब  तो,  ये             वीरानियाँ  मेरी, ━❥ तसल्ली हार मान कर किनारे बैठ                 गई है अब, सुकून  देने  लगी  हैं मुझको, ये            हैरानियाँ मेरी…🔥 ╭─❀💔༻  ╨──────────━❥ ♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦ #LoVeAaShiQ_SinGh☜ ╨──────────━❥

kattupaya s

My novel yadhumatra peruveli part 16 will be published on 27/12/25@11am.good night friends. thank you

Deepak Bundela Arymoulik

-आदमी आदमी के बगैर आदमी आदमी के बगैर अधूरा सा रह जाता है, जैसे बिना दीप बाती अंधेरा मुस्काता है। कदम बढ़ते हैं तो साथ चाहिए, सपनों को भी हाथ चाहिए, एक हाथ से जीवन चलता नहीं, हर मंज़िल को साथ चाहिए। किसान की मेहनत, मज़दूर का पसीना, शिक्षक का ज्ञान, माँ की करुणा, हर रिश्ता, हर श्रम, हर भावना आदमी से आदमी की साधना। कोई राजा हो या हो फकीर, सबकी राहें जुड़ी हुई हैं, बगैर आदमी के आदमी की तक़दीरें टूटी हुई हैं। इसलिए न घमंड, न दूरी रख, इंसान से इंसान जुड़ा रह, क्योंकि इस दुनिया की सबसे बड़ी पूँजी — आदमी का आदमी है। आर्यमौलिक

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